वीर रस की अद्भुत कविता कवि-पुज्य श्री तन सिंह जी
भय मुझको नहीं है अवसान का, बदला लेकर ही रहूंगा अपमान का। जब तक मेघ ना बरसेंगे चातक पानी ना पियेंगे, जल कितना भरा हो दरियाव में । सब कुछ छीन लिया जालिम ने,लगा है बातों में फुसलाने, पस बढ़ता ही जाता है दिल के धाव में ।। करता जाता हूँ उपाय,कैसे भूलूँगा अन्याय, सिर तोड़ के रहुँगा झूठे मान का ।। बदला लेकर ही रहूँगा अपमान का । मन में जलती है चिताएँ उड़ती देख पताकाएँ, किसे युग परिवर्तन पर नाज है । हटकर बढ़ने की तैयारी बाजी जीतने को हारी, मेरे गिरने में भी तो कोई राज है ।। अपने भाग्य को बदलूँगा,प्रण की आग में जलूँगा, वक्त सामने खड़ा है बलिदान का ।। बदला लेकर ही रहूँगा अपमान का । मैं इतिहासों की पुकार,कौन मुझको दे अधिकार, बल से भोगता रहा हूँ यह वसुन्धरा । जलते जौहर की बहार,यहीं पर शाकों की मनुहार, पकी है आजादी की आग में परम्परा ।। मस्तक कैसे मैं झुकाऊँ माँ का दुध क्यों लजाऊँ, मान भंग ही करूंगा तूफान का ।। बदला लेकर ही रहूँगा अपमान का ।। जिनके धाव लगे नवासी फिर भी खड़ग रही थी प्यासी, शूल चुभती मेरी हार के इतिहास की । जो था देश का रखवाला मिला उसको देश निकाला, ...