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वीर रस की अद्भुत कविता कवि-पुज्य श्री तन सिंह जी

भय मुझको नहीं है अवसान का, बदला लेकर ही रहूंगा अपमान का। जब तक मेघ ना बरसेंगे चातक पानी ना पियेंगे, जल कितना भरा हो दरियाव में । सब कुछ छीन लिया जालिम ने,लगा है बातों में फुसलाने, पस बढ़ता ही जाता है दिल के धाव में ।। करता जाता हूँ उपाय,कैसे भूलूँगा अन्याय, सिर तोड़ के रहुँगा झूठे मान का ।। बदला लेकर ही रहूँगा अपमान का । मन में जलती है चिताएँ उड़ती देख पताकाएँ, किसे युग परिवर्तन पर नाज है । हटकर बढ़ने की तैयारी बाजी जीतने को हारी, मेरे गिरने में भी तो कोई राज है ।। अपने भाग्य को बदलूँगा,प्रण की आग में जलूँगा, वक्त सामने खड़ा है बलिदान का ।। बदला लेकर ही रहूँगा अपमान का । मैं इतिहासों की पुकार,कौन मुझको दे अधिकार, बल से भोगता रहा हूँ यह वसुन्धरा । जलते जौहर की बहार,यहीं पर शाकों की मनुहार, पकी है आजादी की आग में परम्परा ।। मस्तक कैसे मैं झुकाऊँ माँ का दुध क्यों लजाऊँ, मान भंग ही करूंगा तूफान का ।। बदला लेकर ही रहूँगा अपमान का ।। जिनके धाव लगे नवासी फिर भी खड़ग रही थी प्यासी, शूल चुभती मेरी हार के इतिहास की । जो था देश का रखवाला मिला उसको देश निकाला, ...

अर्जुन की प्रतिज्ञा (काव्य) Author:मैथिलीशरण गुप्त | Mathilishran Gupt

उस काल मारे क्रोध के तन कांपने उसका लगा, मानों हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा। मुख-बाल-रवि-सम लाल होकर ज्वाल सा बोधित हुआ, प्रलयार्थ उनके मिस वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ? युग-...

HAPPY NEW YEAR EVERY YEAR

खुशियों से तर बत्तर हो ये साल आपका, हर ग़म से बेखबर हो ये साल आपका। अकपो हर घडी नसीब हो मंजिले नई नई, ऐसा हसीन सफर हो ये साल आपका ।। नई चेतना ले आया नया साल आया पशु पक्षी मानव चमन मुस्कुराया  । चाहे जो जहां पर देखे जैसे सपना नया साल मुबारक हो सबको अपना ।।              हिन्दू या मुस्लिम हो सीख या ईसाई              आपस में बनकर रहो भाई  - भाई ।              नहीं कोई आपस मै बैर भाव रखना              नया साल मुबारक हो सबको अपना ।। नयी ये उमर है नया एक लहर है चाकचौध चमकता ये सारा डगर है । कहो दुनिया वालो को सीखे चहकना नया साल मुबारक हो सबको अपना ।।               कहा से चले थे, कहा मेरा घर है               कहा देश भटका है, ये मुझको खबर है ।               करेंगे साकार गांधी नेहरू का सपना         ...

काब्य क्या है किसे कहते है

काव्य जब ह्रदय अहं की भावना का परित्याग करके विशुद्ध अनुभूति मात्र रह जाता है, तब वह मुक्त हृदय हो जाता है। हृदय की इस मुक्ति की साधना के लिए मनुष्य की वाणी जो शब्द विधान करती आई है उसे काव्य कहते हैं। कविता मनुष्य को स्वार्थ सम्बन्धों के संकुचित घेरे से ऊपर उठाती है और शेष सृष्टि से रागात्मक संबंध जोड़ने में सहायक होती है। काव्य की अनेक परिभाषाएं दी गई हैं। ये परिभाषाएं आधुनिक हिंदी काव्य के लिए भी सही सिद्ध होती हैं। काव्य सिद्ध चित्त को अलौकिक आनंदानुभूति कराता है तो हृदय के तार झंकृत हो उठते हैं। काव्य में सत्यं शिवं सुंदरम् की भावना भी निहित होती है। जिस काव्य में यह सब कुछ पाया जाता है वह उत्तम काव्य माना जाता है।